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मंदिर में लगे पोस्टर ने छेड़ी सामाजिक बहस: लड़कियों के पहनावे पर उठे सवाल, मां-पिता को बताया जिम्मेदार; पुजारी महासंघ ने किया समर्थन!
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
मध्य प्रदेश के नागदा स्थित बिड़ला ग्राम के एक बड़े गणेश मंदिर में अचानक लगाए गए एक पोस्टर ने क्षेत्र में विचारों का जबरदस्त भूचाल ला दिया है। पोस्टर में लड़कियों के पहनावे को लेकर तीखे और सवाल खड़े करने वाले 5 बिंदु लिखे गए हैं, जिनमें अभिभावकों — विशेष रूप से माताओं और पिताओं — को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया गया है। खास बात यह है कि इस पोस्टर पर “जनजागरण समिति” का नाम दर्ज है, लेकिन इस संगठन की कोई आधिकारिक पुष्टि या प्रतिनिधित्व अब तक सामने नहीं आया है।
इस घटनाक्रम ने कथावाचक अनिरुद्धाचार्य और प्रेमानंद महाराज द्वारा हाल ही में लड़कियों के पहनावे को लेकर की गई विवादित टिप्पणियों के बाद उठे विवाद को और गहरा कर दिया है। इनकी टिप्पणियों की गूंज जहां सोशल मीडिया और जनसमूहों में पहले ही महसूस की जा रही थी, अब मंदिर परिसर में इस तरह के पोस्टर लगने से यह विवाद धार्मिक स्थलों तक पहुँच चुका है।
पोस्टर का विवादित संदेश
पोस्टर में बेहद तीखे शब्दों में लिखा गया है कि “क्या माता अपने बच्चों को टीवी और फिल्मों से प्रेरित होकर अश्लीलता की ओर धकेल रही है?” और “क्या पिताओं की मौन स्वीकृति इस फूहड़ता को बढ़ावा दे रही है?” इसमें यह भी कहा गया है कि “छोटे और अर्धनग्न कपड़े पहनने वाली लड़कियों को आधुनिक समझने की मानसिकता ही सबसे बड़ा संकट है।” अंतिम पंक्तियों में लिखा गया है कि शालीन और मर्यादित वस्त्र बेटियों के लिए सुरक्षा कवच हैं, न कि कोई रुकावट।
पुजारी महासंघ का स्पष्ट समर्थन
पोस्टर सामने आने के बाद जहां एक ओर समाज दो विचारधाराओं में बंट गया है, वहीं अखिल भारतीय पुजारी महासंघ ने इस पहल का समर्थन करते हुए इसे “धार्मिक मर्यादा और सामाजिक शालीनता की दिशा में आवश्यक कदम” बताया है। महासंघ के अध्यक्ष और महाकाल मंदिर के वरिष्ठ पुजारी महेश शर्मा ने कहा कि मंदिर सिर्फ पूजा का स्थान नहीं, बल्कि आस्था और मर्यादा का केंद्र है। उनका यह भी कहना था कि जैसे दक्षिण भारत के कई मंदिरों में पहले से ड्रेस कोड लागू है, वैसे ही मध्य प्रदेश के मंदिरों में भी ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए।
सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर इस पोस्टर को लेकर तीखी बहस छिड़ी हुई है। कई लोग इसे महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला मान रहे हैं, तो कुछ इसे भारतीय संस्कृति और परंपराओं की रक्षा का जरूरी प्रयास बता रहे हैं। मानवाधिकार और महिला अधिकार से जुड़ी संस्थाएं इस पर तीखी आपत्ति जता रही हैं और इसे ‘मॉरल पोलिसिंग’ का उदाहरण बता रही हैं।
मंदिर समिति और प्रशासन की चुप्पी
इस पूरे विवाद पर सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मंदिर समिति और स्थानीय प्रशासन — दोनों की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। यह पोस्टर कब और किसने लगाया, इसकी जानकारी न मंदिर प्रबंधन के पास है और न ही पुलिस या प्रशासन के पास कोई रिपोर्ट दर्ज की गई है।